उत्तराखंड अपनी संस्कृति और परंपराओ के लिए विख्यात है। यहाँ हर महीने त्यौहार और पर्व होते है। उत्तरकाशी(Uttarkashi) जिले की गंगोत्री घाटी(Gangotri Valley) में एक ऐसा ही पर्व है जिसे बटर फेस्टिवल(Butter Festival) कहा जाता है और होली की तरह इसमें रंगों की बजाय दूध, दही,मट्ठा और मक्कन की होली खेली जाती है। स्थानीय स्तर पर इस त्यौहार को अंडूडी पर्व कहा जाता है।
गंगोत्री घाटी में रैथल गाँव(Rathal Village) से करीब 8 किमी की दूरी पर मखमली घास के बुग्याल में यह त्यौहार हर साल भादों की संक्रांति पर आयोजित किया जाता है। इस दिन सभी अपनी छानियों में खीर और पुड़ियां बनाते है और वनदेवताओं और देवियों की पूजा अर्चना कर अपने पशुओं की खुशहाली की कामना करते है। पहले इस त्यौहार में गोबर और मिट्टी एक दूसरे पर फ़ेंकते थे। लेकिन 2002 से इस पर्व को राष्ट्रीय ,अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बटर फेस्टिवल का नाम दिया गया।
बटर फेस्टिवल(Butter Festival) दयारा बुग्याल(Dayara Bugyal) में आयोजित होता है जो अपनी खूबसूरती के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। विंटर में हिम क्रीड़ा के लिए इसके ढलान काफी अच्छे है। दयारा बुग्याल 28वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह बुग्याल 3100 मीटर से 3800 मीटर की ऊँचाई तक फैला है।उत्तरकाशी वन प्रभाग के टकनौर रेंज में यह बुग्याल स्थित है। यहाँ से 3 छोटी नदियाँ भी निकलती है स्वारी गाड़, पापड़ गाड़, नेहर गाड़ जो आगे चलकर तीनो नदिया भागीरथी में मिलती है।
दयारा बुग्याल जहाँ ट्री लाइन को छोड़ती है वहाँ पर भोजपात्र और मुरिंडा के पेड़ मिलते है जबकि निचले इलाकों में मोरू, खर्च,बांज,बुराँश,थुनेर, और पंगार प्रजाति के पेड़ पाए जाते है। दयारा बुग्याल का क्षेत्र जड़ी बूटीयों के लिए जाना जाता है।बरसात के समय यहाँ रंग बिरंगे फूलों की खुशबू फैली रहती है।अतीस, कुटकी,गूगल,मीठा,सलामपंजा, बजरदंति और ऊपरी इलाकों में ब्राह्मकमल, फेन कमल, आदि कई प्रजातियां पाई जाती है। दयारा बुग्याल जाने के लिए कई मार्ग है जिसमें रैथल से 8, बारसू से 7 और नटीण और क्यार्क गाँव से भी जा सकते है।
हर साल दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल का आयोजन दयारा पर्यटन विकास समिति करती है।इसके लिए पहले दूध, दही,मट्टा और मक्खन को बाल्टीयों में दयारा बुग्याल लाया जाता है।घी संक्रांति के दिन बुग्याल में पूजा अर्चना की जाती है और फिर राधा और श्रीकृष्ण के रूप में मक्खन की हांडी को फोड़कर बटर फेस्टिवल की शुरुआत करते। उसके बाद सभी एक दूसरे पर मक्खन और मट्ठे से होली खेलती है। दयारा बुग्याल में इस वर्ष बड़े ही उत्साह के साथ यह पर्व मनाया गया।
दयारा बुग्याल में हर साल पर्यटन गतिविधियों का दबाव बढ़ता जा रहा है जिससे बुग्याल की जैविविधता भी खतरे में है। पहले बुग्याल में कई जड़ी बूटीयां पाई जाती थी लेकिन अत्यधिक मानव दबाव और दोहन से इस खूबसूरत प्राकृतिक इकोसिस्टम में कई जगह दरार पैदा हो गई है। विगत वर्षों में दयारा बुग्याल में आई दरार को जुट की रस्सीयों से ठीक किया गया था।
सर्दियों के समय जब पूरे बुग्याल में बर्फ की सफ़ेद चादर ओढ़ी रहती है। सर्दियों के समय यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते है। दिसंबर से लेकर मार्च तक दयारा बुग्याल विंटर ट्रेक संचालित होते है। यहाँ से बंदरपूँछ, कालानाग, द्रोपदी का डांडा, गंगोत्री समूह, जोगिन हिमधवल चोटियां दिखाई देती है।