उत्तराखंड ने सदियों से लोक संस्कृति, लोक कलाओं और लोक गाथाओं को संजोकर रखा है। जो इस पावन धरा को अनूठी पहचान दिलाती है। उत्तराखंड जहां पलायन की मार झेल रहा वहीं लोग अपने आराध्य देवताओं को भी गांव में ही छोड़ शहरों में बस गए हैं। वहां की संस्कृति को भूल शहरों की चकाचौंद में उलझ कर फंस गए हैं। लेकिन टिहरी गढ़वाल का जौनपुर विकासखण्ड आज भी अपने संस्कृति और विरासत को जमाए रखा है।
जौनपुर विकासखण्ड के इडवालस्यूँ पट्टी के ईष्ट नागदेवता के प्रति आस्था और विश्वास लोगों में इस प्रकार है कि लोग नागदेवता के 3 साल बाद 15 गांव प्रवास पर अपने सारे कार्य छोड़ देवता के दर्शन और आर्शीवाद लेने अपने-अपने गांव पहुंचते हैं। इस बार नागदेवता 3 साल बाद 15 गांव इडवालस्यूँ के प्रवास पर हैं।
कोरोनाकाल में रहे भ्रमण पर, कोरोना मुक्त हुई पट्टी
साल 2020 में जहां पूरा देश कोरोना से जूझ रहा था वहीं नागदेवता भ्रमण के लिए रोक लगा दी थी लेकिन नागदेवता के प्रति आस्था और विश्वास नागदेवता के भ्रमण को रोक नहीं सके। नागदेवता के भ्रमण होते ही कोरोना का डर और कोरोना दूर भाग गया इस साल नागदेवता के साथ ऐतिहासिक भीड़ देखने को मिली। 2020 में जो लोगो कोरोना पोजिटिव भी पाए गए वे बिना दवा के ठीक हो गए।
सेमवाल पूजारी तो नरेंद्र ठाणी
नागदेवता के पूजारी भटवाड़ी के सुमनलाल सेमवाल और कोट के नरेंद्र बिष्ट ठाणी हैं। नागदेवता की पूजा सुमनलाल सेमवाल लगाते हैं तो देवता के डोली की देखरेख नरेंद्र ठाणी करते हैं, वहीं जब नागदेवता की डोली प्रवास पर रहती है, तो देवता के डोली की पूरी जिम्मेदारी गांव के स्याणा की होती है। डोली जब जिस गांव में जाती है तो जिस गांव से आती है और जिस गांव में अगले दिन जाएगी वहां के गांव वाले मोहिला लेकर उस गांव में नाच गाने और उत्साह के साथ आते हैं, जहां डोली का प्रवास रहता है और गांव के स्याणा हर गांव के स्याणा को पिठांई लगाकर स्वागत और सम्मान करते हैं। डोली के आने पर पूरे पट्टी के लोग आमंत्रित रहते हैं और उनके लिए हर घर में पकवान बने रहते हैं। वहीं अगले दिन देवता के मौरे(मूर्तियां) दिखाई जाती है। फिर दिन भर गांव के लोग डोली को उल्हास के साथ नचाते हैं।
सोने का छत्तर चढ़ाया
कोरोना काल में जब क्षेत्र के लोग कोरोना से कोसों दूर रहे तो लोगों ने नागदेवता की कृपा और आर्शिवाद बताया। यह अंधविश्वास नहीं बल्कि हकीकत है। कई लोग शहरों से वापस अपने गांव लोटे तो वे कोरोना संक्रमित पाए गए। लेकिन जैसे ही वे घर पहुंचे तो कोरोना नेगेटिव निकले। यह कोई चमत्कार से कम नहीं था बल्कि नागदेवता का भ्रमण का समय भी था तो लोगों ने नागदेवता का भ्रमण उल्लास और उत्साह के साथ मनाया। पट्टी के लोगों ने प्रण लिया की जब नागदेवता फिर 3 साल बाद पट्टी के प्रवास पर रहेंगे तो नागदेवता को सोने का छत्तर चढ़ाएंगे। इस साल जब नागदेवता प्रवास पर निकते तो लोगों ने सोने के छत्तर से देवता का स्वागत किया।
उल्लास और उत्साह के साथ श्रीकोट से शुरू हुआ प्रवास
नागदेवता की डोली इस साल के प्रवास में हरिद्वार से स्नान कर देवीथात छोटी थौलू पहुंची। उसके अगले दिन श्रीकोट मेले 22 अगस्त से डोली 15 गावं इडवालस्यूँ के प्रवास पर है । श्रीकोट के बाद भटवाड़ी, बसाणगांव, ऐंदी, बिष्टौंसी, खसौंसी, बमणगांव, खासकोटी, घियाकोटी, झंगेरी, घरारा, कठयूढ़, आखली, पन्यारसेरी, और आखरी में कोट गांव प्रवास के बाद कोट मंदिर में डोली मंदिर में स्थापित हो जाएगी। नागदेवता ने पट्टी के एकता और प्रेम को फिर से लोगों के बीच जगाया है, और पट्टी के लोग श्रीकोट गांव से नागदेवता के साथ मंदिर भंडारण कोट तक साथ में रहेंगे।
कपिल और केलाश ने गाया हारूल
नागदेवता के इतिहास और आस्था को देखते कपिल नौटियाल और केलाश दास ने नागदेवता का हारूल गाया है। जिसे यूट्यूब पर खूब देखा और पसंद किया जा रहा है।