त्रिलोचन भट्ट वरिष्ट पत्रकार
पुलिस की तरफ से यह मामला अब सुलझा लिया गया है। लेकिन, उत्तराखंड का जनमानस इतनी सहजता से इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। अंकिता की मौत के मामले में कई सवाल उठ रहे हैं, जिनके उत्तर नहीं दिए जा रहे हैं। पुलिस की थ्योरी कहती है कि अंकिता को 5 दिन पहले चीला बैराज में फेंका गया था। लेकिन, ऋषिकेश एम्स में अंकिता के शव को देखने वालों का कहना है कि उसे शव बरामद होने से मात्र कुछ घंटे पहले ही बैराज में फेंका गया था। आरोप है कि 5 दिनों तक उसके साथ कई तरह की दरिंदगी की गई।
इस मामले में लगातार जुड़े और पुलिस, आरएसएस व भाजपा की किरकिरी बने एक्टिविस्ट संजय सिलवार कई सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि 24 सितंबर को अंकिता का शव बरामद होने की सूचना मिलने के बाद उनके कुछ साथी चीला बैराज पहुंचे। पुलिस अंकिता के पिता और भाई को लेकर वहां गई थी। उन्हें किसी से नहीं मिलने दिया गया। शव लाकर एम्स ऋषिकेश की मोर्चरी में रखा गया। कुछ देर बाद जब वे मोर्चरी पहुंचे तो भाजपा विधायक रेनू बिष्ट मोर्चरी में मौजूद थीं। संजय सवाल उठाते हैं कि रेनू बिष्ट वहां क्या कर रही थी? वहां मौजूद लोगों ने शव को देखने की इजाजत मांगी, लेकिन इजाजत नहीं मिली। काफी शोर-शराबा करने के बाद सिर्फ दो महिलाओं को शव देखने की इजाजत दी गई।
शव को देखने वाली दो महिलाओं ने जो कुछ बताया वह वास्तव में कई तरह के सवाल पैदा करता है। बताया गया कि शव फूला हुआ नहीं था। 5 दिन तक शव बैराज में पड़ा रहा हो और फिर भी फूला हुआ न हो, यह एक बड़ा सवाल है। शव देखने वाली महिलाओं ने यह भी बताया कि शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे। एक दांत टूटा हुआ था। सबसे खास बात यह है कि शव के किसी भी हिस्से को मछलियों ने नहीं खाया था, जबकि किसी भी शव के गंगा नदी में आते ही सबसे पहले उस पर मछलियां झपटती हैं।