एटना की जहां तक बात है तो वहां से धुंआ और राख निकलनी शुरू हो गई है। इसके अलावा पीक ऑफ द फर्नेस से लावे की नदी लगातार बाहर की ओर बह रही है। एटना इससे पहले 2017, 2013 और 2012 में भी अपना भयंकर रूप दिखा चुका है। एक बार यह ज्वालामुखी पूरे शहर को लील चुका है। कहा ये भी जाता है कि हर एक हजार वर्ष बाद इसमें भयंकर विस्फोट होता है जिसके बाद इसके आसपास सब कुछ खाक हो जाता है।
आपको बता दें कि विलारिका ज्वालामुखी चिली के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी में से एक है। इसे रुकापिलान भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘शैतान का घर’। चिली के मध्य में 9000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद इस ज्वालामुखी से लगातार लावा निकल रहा है। खतरे को देखते हुए ज्वालामुखी के आसपास का इलाका खाली करा लिया गया है। ये ज्वालामुखी 1558 में पहली बार भड़का था। इसके बाद 1640 और 1648 में इसका भयंकर रूप देखने को मिला था। तब से अब तक 54 बार भड़क चुका है। इससे पहले इस ज्वालामुखी ने मार्च 2015 जबरदस्त आग उगली थी। उस वक्त हुए विस्फोट से टनों लावा और राख बाहर निकला था।
इसके बाद अप्रेल 2015 में भी दक्षिणी चिली में स्थित कलबूको ज्वालामुखी के फटने से आसमान धुएं से भर गया था। इस दौरान ज्वालामुखी से निकलने वाले धुंए और राख का गुबार इतना भयंकर था कि इसको करीब बीस किमी दूर से देखा जा सकता था। इससे पहले यह ज्वालामुखी 1972 में फटा था। इसके चलते कलबूको के पश्चिम में 50 किलोमीटर दूर 2.4 लाख निवासियों वाले शहर पुएर्टो मोंट के हवाई अड्डे को उस वक्त बंद करना पड़ा था।आपको यहां पर ये भी बता दें कि कलबूको की ऊंचाई 2003 मीटर है और यह चिली के 90 सक्रिय ज्वालामुखी में से एक है। कलबूको में हुए धमाके के बाद ज्वालामुखी के 20 किलोमीटर के दायरे से चार हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था।
गौरतलब है कि एंडीज पर्वतमाला जहां विलारिका ज्वालामुखी स्थित है, वह दुनिया की सबसे लम्बी पर्वत श्रृंखला है। यह दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित है। करीब सात हजार किमी लंबी और 200 किमी चौड़ी इस पर्वतमाला की औसत ऊंचाई 13 हजार फीट है। यह दक्षिण अमेरिका के सात देशों जिसमें अर्जेन्टीना, चिली, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर और वेनेज़ुएला शामिल हैं से होकर गुजरती है। लेकिन चिली में इसका विस्तार सबसे अधिक है।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि विश्व का सबसे ऊंचा और सक्रिय ज्वालामुखी ‘ओजस डेड सालाडो’ जिसकी ऊंचाई करीब 6885 मीटर है इसी पर्वतमाला में अर्जेन्टीना–चिली देश की सीमा पर स्थित है। यहां पर ये भी जान लेना जरूरी है कि वर्तमान समय में विश्व में सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या लगभग 500 है। इनमें सबसे प्रमुख इटली का ‘एटना’ और ‘स्ट्राम्बोली’ है। स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर स्थित है जिसमें से हमेशा गैस निकलती रहती है। इस वजह से इसके आसपास का भाग हमेशा चमकता रहता है। यही वजह है कि इसे ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ’ भी कहा जाता है।
यहां पर ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इस वर्ष ज्वालामुखी के फटने की घटनाएं कुछ ज्यादा ही सामने आई हैं। जुलाई से लेकर अगस्त तक हवाई, ग्वाटेमाला समेत इक्वाडोर में लोगों को इस त्रासदी का सामना करना पड़ा है। अगस्त में ही इंडोनेशिया के माउंट आगुंग ने आग उगलनी शुरू की थी। इसकी वजह से यहां पर करीब सवा सौ लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना पड़ा था। इंडोनेशिया दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से है जहां लगभग हर वर्ष लोगों को इस तरह की आपदा का सामना करना पड़ता है। माउंट आगुंग ज्वालामुखी से निकलती राख के चलते रिसॉर्ट द्वीप बाली स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा एहतियातन बंद करना पड़ा था। इस ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण हवा में करीब 2,500 मीटर (8,200 फीट) राख का गुब्बारा उठता हुआ देखा गया
आगुंग ज्वालामुखी से दो दिन पहले दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर में गलपागोस द्वीपसमूह के इजाबेला द्वीप स्थित सिएरा नेग्रा ज्वालामुखी ने ने भी आग उगली थी। इससे वहां आस-पास में लावे की झील बह रही है। मीडिया में इसकी फोटो आने के बाद इसको सोशल मीडिया पर काफी वायरल किया गया था। गलपागोस को दुनिया के सबसे अधिक ज्वालामुखीय सक्रिय क्षेत्रों में शुमार किया जाता है। सिएरा नेग्रा पिछली बार वर्ष 2005 में फूटा था। अद्वितीय जैवविविधता और पर्यावरण के चलते गलपागोस में प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते हैं।
इसी वर्ष जून में ग्वाटेमाला में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के चलते 70 लोगों की मौत हो गई थी। फ्यूएगो ज्वालामुखी की चपेट में आने से दर्जनों लोग अभी तक लापता हैं। इस ज्वालामुखी में विस्फोट के बाद यहां से करीब चार हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों में पहुचाया गया। ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति ने तीन दिन का राष्ट्रीय शोक भी घोषित किया था। इस ज्वालामुखी से निकलने वाले धुएं के गुबार को करीब 40 किमी दूर से देखा जा सकता था। सरकार की मानें तो इसकी वजह से करीब 17 लाख लोग इससे प्रभावित हुए। इसकी वजह से ग्वाटेमाला सिटी का एयरपोर्ट इस ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से बंद कर दिया गया। स्थानीय विशेषज्ञों ने इस ज्वालामुखी में हुए विस्फोट को साल 1974 के बाद सबसे बड़ा धमाका बताया था।
इसी वर्ष मई में अमेरिका के सुदूर हवाई के पास ज्वालामुखी फटने से निकल लावा बाहर निकल आया और वहां पर भी लावा की लंबी नदी बहने लगी थी। यह लावा प्रशांत महासागर में जाकर मिल रहा था। लावे की यह नदी लगभग दो सप्ताह तक बादस्तूर बहती रही। इसकी वजह से इस इलाके में काफी दूर तक जहरीली गैस फैल गई। आपको बता दें कि गर्म लावा समुद्र में मिलने से टॉक्सिक पदार्थ बन जाता है जिससे खतरा पैदा हो जाता है।
इस ज्वालामुखी के मुख से लावा निकलने से पहले राख का करीब 4000 मीटर ऊंचा गुबार निकलता देखा गया था। इसकी वजह से यहां के आस-पास के इलाकों में करीब 5 की तीव्रता का भूकंप भी आया था। इसने करीब दो दर्जन से अधिक घरों को तबाह कर दिया था। ज्वालामुखी में धमाके बाद से यहां के करीब दो हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया था। इसके अलावा वहीं पुना एस्टेट्स इलाके से 10 हजार लोगों को खाली कर जाने को कहा गया था।
ज्वालामुखियों पर नजर रखने वाले भूगर्भशास्त्री ब्रिगर लुअर का मानना है कि करीब सौ वर्षों तक शांत रहने के बाद कोई ज्वालामुखी सक्रिय होता है। इसके फटने के बाद इसके अंदर से लावे के साथ पानी और सल्फरडाईऑक्साइड भी बाहर आती है। उनके मुताबिक इस लावे से वैज्ञानिकों को जमीन के अंदर चल रही प्रक्रियाओं का पता चलता है। आमतौर पर इसमें होने वाले धमाके तीन प्रकार के होते हैं और इनसे बाहर आने वाली चीजों में भी भिन्नता पाई जाती है। इसके लावे में से निकले पदार्थों के जरिए ज्वालामुखी के अंदर के तापमान और भूगर्भीय हलचल आदि की जानकारी होती है। इनकी जांच से इसके बढ़ते खतरे को भी भांपा जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद इसकी सटीक भविष्यवाणी करना फिलहाल लगभग नामुमकिन है।