इगास उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद मनाई जाने वाली दिवाली है,, इसे उत्तराखण्ड के अलग अलग हिस्सों में इकास इगास या गास(जौनसार के कुछ हिस्सों में) के नाम से जानते हैं..!
17वीं सदी पर आधारित एक पुस्तक Early Jesuit Travellers in Central Asia(1603-1721) जो कि लेखक Cornelius Wessels के द्वारा लिखी गयी है में भी इस पौराणिक पर्व का जिक्र आता है ,कहा जाता है कि 17 वीं सदी के आसपास तिब्बती राजा की सेना अक्सर लूटमार या साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से उत्तराखण्ड पर हमला किया करती थी, एक बार तत्कालीन टिहरी रियासत (जिसमें आज के रुद्रप्रयाग,चमोली, उत्तरकाशी पौड़ी, टिहरी, जौनसार ,रँवाई और लोअर हिमाचल का कुछ हिस्सा 16 वीं 17 वीं सदी में रियासत के अंग थे ) के राजा महिपति शाह ने अपने सेनापति माधो सिंह भण्डारी को तिब्बतियों से मुकाबला करने भेजा पर रण में लड़ते लड़ते कई दिन बीत गए दिवाली भी बिन हर्षोल्लास बीत गयी पर सेनाओं की सूचना नहीं मिली, पर जब तिब्बत विजय की सूचना दिवाली के 11 दिन बाद राजा को मिली और माधो सिंह भंडारी अपने लावलश्कर के साथ विजय होकर लौटे तो राजा ने तत्कालीन राजधानी श्रीनगर को दुल्हन की तरह सजा दिया और दिवाली के 11 वें दिन फिर से दिवाली(बग्वाल) मनाने की राजशी घोषणा हुई।
तब से आज तक इगास को उत्तराखण्ड में धूमधाम से मनाया जाता है हालांकि आधे उत्तराखण्ड में इस लोक पर्व की परंपरा अब विलुप्त हो चुकी है । पर इस वर्ष उत्तराखण्ड सरकार ने इसके पौराणिक महत्व को देखते हुए इस दिन की आधिकारिक अवकाश की घोषणा की है यह एक अच्छा निर्णय है।