भाई, परिवार और गांधी की बात हो तो आप समझ जाएंगे कि बीजेपी सांसद वरुण गांधी की बात हो रही है। क्यों होती है वजह दो बयान एक राहुल गांधी का और दूसरा उनके भाई वरुण गांधी का। बीते दिनों जहां राहुल ने कहा कि अगर वरुण गांधी भारत जोड़ों यात्रा में शामिल होना चाहें तो उनका स्वागत है। वहीं वरुण गांधी का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा है। जो बीते साल अगस्त का है। लेकिन उससे पहले समझेंगे कि दोनों भाई एक ही ट्रैक पर हैं। बस फर्क है कि दोनों की पार्टी अलग है।
क्या वाकई वरुण गांधी घर वापसी कर सकते हैं?
जाने अनजाने में ही सही लेकिन राहुल, वरुण दोनों की भाषा एक ही लगती है। हिंदू मुस्लिम को बांटने की बात हो या मीडिया को फटकार लगाने की दोनों भाई एक ही टेक पर हैं। तो राजनीतिक हलकों पर भी सभी की नर्सरी इसी बात पर टिकी है कि क्या राहुल की भारत जोड़ो यात्रा जब यूपी में पहुंचेगी तो वरुण गांधी उसमें शामिल होंगे। इस पर कोई ठोस जानकारी तो सामने नहीं आई है। लेकिन राहुल ने संकेत दिया है कि वरुण अगर यात्रा में शामिल होते हैं तो उनका स्वागत है। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि वरुण बीजेपी से है वो दिक्कत करेंगे।
2024 चुनाव से पहले वरुण गांधी राहुल के साथ आ सकते हैं नजर
पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी आए दिन अपने ही पार्टी के खिलाफ बगावत सुर छेड़ते रहते हैं, चाहे बेरोजगारी का मुद्दा हो अग्निवीर का मुद्दा हो किसानों का मुद्दा हो वरुण गांधी ने हमेशा अपने ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया। वरुण गांधी ने एक सभा को संबोधितकरते हुए कहा था कि मैं ना कांग्रेस के खिलाफ हूं ना पंडित नेहरू के खिलाफ हमारे देश की राजनीति देश को जोड़ने की होनी चाहिए ना किगृहयुद्ध पैदा करने की। आज जो लोग केवल धर्म और जाति के नाम पर वोट ले रहे हैं उनसे हम रोजगार शिक्षा, चिकित्सा का सवाल तो पूछें। हमको वो राजनीतिक नहीं करनी जो लोगों को दबाए, हमको वो राजनीति करनी है जो लोगों को उठाए, बीजेपी सांसद वरुण गांधी के कहे यह शब्द इन दिनों वायरल हो रहे हैं। लेकिन यह समझना जरूरी है कि वरुण और उनकी मां मेनका गांधी के सामने आखिर रास्ते क्या हैं?
“वे कांग्रेस से अलग होकर बीजेपी में कैसे गए।
आज उनकी हालत ऐसी कैसे बनी।”
मेनका गांधी कैसे बीजेपी में शामिल हुई?
आपातकाल के बाद 1970 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गई तो इनका गांधी ही थी जो उस वक्त सूर्य मैगजीन निकालती थी अपनी सास के विरोध को लेकर धराधर आर्टिकल लिखे। उसी से साफ था कि मेनका की दिलचस्पी राजनीतिक में थी लेकिन 1980 में संजय की आकस्मिक मौत के बाद जब इंदिरा ने तवज्जो बड़े बेटे राजीव को दी, तो मेनका ने अपने बेटे वरुण को लेकर अलग राह चुनी। 1982 में मेनका गांधी ने प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया, मेनका ने अगले साल अकबर अहमद के साथ मिलकर राष्ट्रीय संजय मंच नाम से पार्टी बना ली। इसी के साथ, इंदिरा के घर में मेनका की वापसी के रास्ते बंद हो गए। इसके बाद 1999 में मेनका ने बीजेपी के टिकट पर पीलीभीत से बंपर जीत हासिल की।
बीजेपी को भी लगा कि उनके पास भी गांधी है। लेकिन कहते हैं ना समय कभी नहीं रुकता। समय बदला और बीजेपी की भी मांग बदली। लेकिन वरुण गांधी और मेनका गांधी का गांधी प्रेम वहीं का वहीं रहा। वरुण गांधी बीजेपी में साल 2004 में शामिल हुए थे। उस समय बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार और पार्टी के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी का उन्हें पूरा समर्थन था। वजह थी वह पढ़े लिखे थे। जबरदस्त भाषण देते थे और गांधी परिवार के चेहरों को टक्कर देकर चुनाव भी जीते थे। जब बीजेपी की कमान राजनाथ सिंह के हाथ में थी उस वक्त पार्टी में उनका कद भी ठीक था। पार्टी महासचिव और बंगाल के प्रभारी भी थे। कहा जाता है कि उनका कद उसी दिन से खत्म होने लगा था जब उन्होंने राजनाथ की तुलना अटल बिहारी वाजपेई कर दी थी। 2013 के आस-पास की बात है मतलब राजनाथ में उन्हें अगला प्रधानमंत्री दिखने लगा था। लेकिन बीजेपी में रहकर ऐसे फैसले खुद नहीं ले सकते थे उस वक्त तक नरेंद्र मोदी गेम से बाहर थे लेकिन जैसे ही नरेंद्र मोदी गेम में आए वरुण गांधी और मेनका गांधी का गेम बिगड़ने लगा।
बीजेपी को पहले गांधी सरनेम की जरूरत थी मोदी लहर ने उस सोच को ही बदल दिया पहले लगता था कि गांधी के नाम से ही वोट मिल जाता हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस धारणा को ही मिटा दिया। जानकार घटना का भी जिक्र करते हैं जब वरुण गांधी बंगाल के प्रभारी थे और 2014 के लिए नरेंद्र मोदी की एक रैली हुई थी तब दावा किया गया था कि करीब दो लाख का समर्थन मिला है।नजिम्मेदारी वरुण गांधी पर ही थी। वे सामने आए और कह दिया ये झूठ है सिर्फ 40- 50 हजार लोग ही रैली में पहुंचे थे। बस इसी दिन से वरुण गांधी और मेनका गांधी मानो साइडलाइन हो गए। इसके बाद जब 2014 में अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने तो वरुण गांधी को महासचिव पद से हटा दिया गया। 2019 में नड्डा अध्यक्ष बने तो मां-बेटे दोनों को कार्यकारिणी से भी आउट कर दिया गया।
वरुण गांधी और मेनका गांधी बस नाम के ही अब बीजेपी में हैं ऐसा समझिए कि बीजेपी या तो जल्दी दोनों को बाहर करेगी या दोनों खुद फैसला लेंगे क्योंकि धीरे-धीरे इनसे सब कुछ छीन गया है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह मंत्री थी लेकिन 2019 में उन्हें मंत्रिमंडल से भी बाहर कर दिया गया। 2022 के किसी भी चुनाव में मां-बेटे को प्रचार में नहीं भेजा गया जबकि वरुण गांधी एक वक्ता के रूप में इतने प्रभावशाली तो है कि उन्हें प्रचार की जिम्मेदारी दी जाए। आने वाले चुनाव में भी 99% फिक्स है कि दोनों को बीजेपी से टिकट नहीं दिया जाएगा। ऐसे में वरुण गांधी के पास चार ऑप्शन है सपा आरएलडी कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस हालांकि अखिलेश यादव वरुण गांधी की ही तरह विरासत में विश्वास रखते हैं ऐसे में अगर वह सपा में आते हैं उन्हें अखिलेश से ज्यादा लाइमलाइट मिलती है तो सपा सुप्रीमो को दिक्कत भी हो सकती है।
हालांकि राजनीतिक में कुछ भी उलटफेर हो सकता है। रही बात आरएलडी की तो यह अखिलेश की टीम बी है। पार्टी सुप्रीमो जयंत चौधरी को वरुण गांधी की अटेंशन गैन करने से कोई दिक्कत नहीं होगी लेकिन क्योंकि वह गठबंधन में शामिल हैं तो परेशानी बन सकती है। ऐसे में वरुण गांधी के पास एक सुरक्षित ऑप्शन कांग्रेस ही है, उनका परिवार भी है हालांकि यूपी में कांग्रेस की स्थिति अच्छी तो नहीं है लेकिन क्या पता वरुण के शामिल होने के बाद हालात बदल जाए। यूपी में वैसे भी जनता का झुकाव सेंटीमेंट की तरफ होता है लेकिन क्या पता राहुल गांधी वरुण को साथ लाकर कांग्रेस पर कोई जादू कर पाए खैर यह तो बात की बात है लेकिन अभी तो पूरा फोकस भारत जोड़ो यात्रा पर ही होगी जो जल्दी यूपी पहुंचने वाली है।