कृषि विज्ञान केंद्र सुंई के वैज्ञानिकों के अनुसार यहां कीवी सेब का स्थान ले सकती है, बशर्ते कि काश्तकार कीवी उत्पादन की ओर ध्यान केंद्रित करें। केंद्र की उद्यान वैज्ञानिक डा. रजनी पंत ने बताया कि कीवी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र में पांच प्रजातियों के 500 पौध तैयार किए गए हैं। इन पौधों को काश्तकारों को उपलब्ध कराना शुरू कर दिया गया है।
काश्तकारों को कीवी उत्पादन तकनीकि प्रबंधन विषय पर प्रशिक्षण देते हुए डा. रजनी पंत ने बताया कि कीवी उत्पादन समुद्र तल से 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में किया जा सकता है। चंपावत समुद्र तल से 1650 मीटर की ऊंचाई पर है। इस लिहाज से यहां की परिस्थितियां कीवी उत्पादन के लिए मुफीद हैं। कृषि विज्ञान केंद्र में चंपावत की भौगोलिक परिस्थिति के लिए उपयुक्त पांच प्रजातियों के कीवी पौध तैयार किए गए हैं। केंद्र में कीवी की जिन प्रजातियों के पौध तैयार किए गए हैं उनमें ब्रूनो, हेवर्ड, एलीसन, एबॉट, मोंटी शामिल हैं। यहां की जलवायु के लिए इनमें एलीसन प्रजाति काफी अधिक फाइदेमंद है। बताया कि कीवी उत्पादन के लिए विशेष मिट्टी की जरूरत नहीं होती। शुरुआती तीन वर्षों तक पौधों को पानी की आवश्यकता होती है।
कीवी के पौधों में तीन वर्ष में फल आने शुरू हो जाते हैं। एक पेड़ से 60 से 70 किलोग्राम तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। उद्यान वैज्ञानिक ने बताया कि कीवी उत्पादन करने वाले काश्तकारों को कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से तकनीकि सहयोग किया जाएगा। कीवी का बाजार भाव ढाई से तीन सौ रुपये प्रति किलोग्राम है। चंपावत में इसकी मांग भी अधिक है। उन्होंने काश्तकारों से कीवी उत्पादन पर विशेष ध्यान देने की अपील की। प्रशिक्षण में जिले के विभिन्न गांवों से काश्तकार और उद्यान विभाग के कर्मचारी पहुंचे थे।
प्रशिक्षण में कीवी पौध तैयार करने, रोपण के लिए गड्ढे तैयार करने, खाद, उर्वरकों की मात्रा, कलम विधि से पौध तैयार करने, ग्राफ्टिंग, लेयरिंग, कटाई-छंटाई व अन्य तकनीकों की विस्तार से जानकारी दी गई। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद नवीन वर्मा, दिनेश चंद्र, गिरीश चंद्र, महेश चंद्र जोशी, दरवान सिंह, अनूप सिंह, जोगादत्त जोशी, कैलाश कुमार आदि ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र स पौधे लेने के बाद वे कीवी पौधों की रोपाई शुरू कर देंगे।