लगातार बढ़ रहे तापमान की वजह से ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। जिसके कारण दुनियाभर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।ग्लेशियर का पिघलने से दुनियाभर में खतरा मंडरा रहा है। इससे झीलों में पानी बढ़ रहा है जिससे बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों की स्टडी है कि इस सदी के अंत तक आधी दुनिया के करीब 21.5 लाख ग्लेशियर पिघल जाएंगे। नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियर झीलों (हिमनद झीलों) के कारण भारत में 30 लाख और दुनिया भर में 1.5 करोड़ लोगों का जीवन संकट में है।
ग्लेशियर असल में बर्फ की नदियां होती है, जो करोड़ों सालों में दब-दबकर जम-जमकर कठोर बर्फ में बदल जाती हैं। जो पहाड़ों और घाटियों में तेजी से पिघल रही है। जिनसे निकलने वाली नदियों का बहाव तेज होता जा रहा है औ समुद्र में बड़ा रूप लेकर बड़े हिमखंडों में बदल रही है। अध्ययन के मुताबिक, जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है। ग्लेशियर के टुकड़े तेजी से पिघलते रहे हैं और झीलों में पानी का स्तर बढ़ जाता है। जिसके कारण झील फट सकती है, झील फटने से पानी और मलवा नीचे आएगा और अपने साथ बहुत बड़ी तबाही मचाएगी। इसके कारण सुनामी या बाढ़ की संभावना अधिक बढ़ जाती है। शोधकर्ता रॉबिन्सन ने कहा, ये हिमनद मानव निर्मित बांधों से अलग नहीं हैं।
ग्लेशियर से बनी झीलों के फटने की प्रक्रिया को ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड (GLOF) कहते हैं। ऐसी बाढ़ की रेंज कम से कम 120 किलोमीटर तक होती है। ज्यादा से ज्यादा केदारनाथ या चमोली जैसा हादसा दोहरा सकती हैं। सबसे ज्यादा खतरा भारत, पाकिस्तान और चीन को है। यह स्टडी हाल ही में Nature कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित हुई है। स्टडी में बताया गया है कि दुनियाभर के ग्लेशियरों ने 2006 से 2016 के बीच 332 गीगाटन बर्फ खोया है।
1990 से अब तक 50 फीसदी ग्लेशियर पिघल चुके
साल 1990 से अब तक दुनियाभर के 50 फीसदी ग्लेशियर पिघल चुके हैं। भारत, पाकिस्तान और चीन के करीब 90 लाख लोग 2000 ग्लेशियर से बनी झीलों के निचले इलाके में रहते हैं। साल 2021 में चमोली हादसे में 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। एल्प्स और उत्तरी अमेरिका के पहाड़ों की तुलना में एशियाई हिमालयी पहाड़ों के ग्लेशियल झीलों की स्टडी सही से नहीं होती। भारत में सबसे ज्यादा ढंग से अगर किसी ग्लेशियर की स्टडी की गई है तो वह है छोटा शिगड़ी।
1941 के बाद से 30 से अधिक प्राकृतिक घटनाएं
शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1941 के बाद से पहाड़ों में हिमस्खलन से लेकर ग्लेशियर झील फटने के कारण 30 से अधिक आपदाओं की घटनाएं सामने आई हैं। इसमें हजारों लोगों की जानें गई हैं।
2022 में पिघली बहुत ज्यादा बर्फ
छोटा शिगड़ी ग्लेशियर के 20 साल का रिकॉर्ड मौजूद है। इस ग्लेशियर से साल 2022 बहुत ज्यादा बर्फ पिघली। यह साल 2002 से 2021 में पिघली बर्फ से तीन गुना ज्यादा थी। यानी साल 2022 भारत में काफी ज्यादा गर्म था। IIT Indore के ग्लेशियोलॉजिस्ट फारूक आजम के मुताबिक छोटा शिगड़ी पर जलवायु परिवर्तन का बहुत ज्यादा असर पड़ा है। यहां से आपदा तो आ ही सकती है साथ ही भविष्य में इस ग्लेशियर के नीचे रहने वाले लोगों को पानी की किल्लत का सामना भी करना पड़ सकता है।
इससे पहले जुलाई 2022 में एक स्टडी आई थी जिसमें कहा गया था कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर असाधारण गति से पिघल रहे हैं। यह गति इतनी ज्यादा हो गई है कि इससे भारत, नेपाल, चीन, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान समेत कई देश अगले कुछ सालों में पानी की भयानक किल्लत से जूझने वाले हैं। क्योंकि इन देशों की ज्यादातर नदियां तो हिमालय के ग्लेशियर से ही निकली हैं। चाहे वह गंगा, सिंध हो या फिर ब्रह्मपुत्र।
पिछले कुछ दशकों में 10 गुना पिघवे ग्लेशियर
वैज्ञानिकों ने स्टडी के दौरान देखा कि हिमालय के ग्लेशियर पिछले कुछ दशकों में 10 गुना ज्यादा गति से पिघले हैं। जबकि, छोटा हिमयुग यानी 400 से 700 साल पहले ग्लेशियरों के पिघलने की गति बेहद कम थी। पिछले कुछ दशकों में यह तेजी से बढ़ा है। इंग्लैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने यह स्टडी की है। अब तक हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों का अध्ययन किया। उनकी सतह, बर्फ का स्तर, मोटाई, चौड़ाई और पिघलने के दर की स्टडी की गई।
वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में पाया कि इन ग्लेशियरों ने अपना 40% हिस्सा खो दिया है। ये 28 हजार वर्ग किलोमीटर से घटकर 19,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर आ गए हैं। इस दौरान इन ग्लेशियरों ने 390 क्यूबिक किलोमीटर से 590 क्यूबिक किलोमीटर बर्फ खोया है। इनके पिघलने की वजह से जो पानी निकला है, उससे पूरी दुनिया के समुद्री जलस्तर में 0.92 मिलीमीटर से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है।
2022 में 16 झीलें फटी
वैज्ञानिकों ने कहा कि अकेले 2022 में देश के उत्तरी गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में कम से कम 16 ग्लेशियर झील फटने की घटनाएं हुईं। हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि पिछले साल पाकिस्तान में आई बाढ़ का कितना हिस्सा हिमनदों के पिघलने से जुड़ा था