चारधाम के लिए आनलाइन बुकिंग शुरू हो चुकी है। यदि यात्रा में कैरिंग कैपिसिटी तय नहीं होती है तो सरकार को चाहिए कि वह गाइडलाइन तय करें कि तीर्थयात्री कर्णप्रयाग से आगे, उत्तरकाशी और बडकोट से आगे वाहन न ले जाएं। इससे ब्लैक कार्बन हमारे ग्लेशियरों तक नहीं पहुंचेगा और प्रदूषण भी नहीं होगा।
यही नहीं, तीर्थयात्रियों पर यह शर्त भी लागू हो कि यदि पवित्रधाम में जाएं हो वहां मल विसर्जन नहीं करें। यदि तीर्थयात्री मल त्यागे तो डिब्बे में बंद कर अपने साथ वापस ले आएं। यदि तीर्थयात्री ऐसा नहीं करते, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। यात्रा सीजन में देखा गया है कि तीर्थयात्रियों का ग्रुप नदियों किनारे ही डेरा डाले रहते हैं और वहीं खाते हैं और मल विसर्जन गंगा और उसकी सहायक नदियों में करते हैं। गंगा को निर्मल और अवरिल बनाना भी मोदी जी का सपना है। इस सपने की लाज रखनी होगी।
वैसे भी यदि प्रदेश सरकार आकलन करें तो 45 लाख तीर्थयात्री यहां दर्शनों के लिए आते हैं। एक अनुमान के मुताबिक एक व्यक्ति औसतन एक साल में 90 किलो मल विसर्जित करता है। यदि वह छह दिन चारधाम यात्रा पर आता है तो गणित लगा लीजिए कि कितने टन मल देवभूमि में कर गये। बदरीनाथ धाम को छोड़कर कहीं भी एसटीपी नहीं है। होटल वाले भी बारिश वाले दिन सीवेज की सारी गंदगी गंगा और सहायक नदियों में छोड़ देते हैं। सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए कि चारधाम यात्रा से सरकार को कितना लाभ होता है। चारधाम को सेल्फी प्वाइंट और हनीमून डेस्टिनेशन नहीं बनाया जाना चाहिए।