गुनानंद जखमोला
राजा साहेब अपने दरबारियों के संग चम्पावत की सड़कों पर घूमने लगे। दरबारी फूलकर कुप्पा थे कि हर चौक-चौराहे, गली, पोल-खंभों पर, टीवी चैनलों और अखबारों में राजा के पोस्ट लगे हैं। ऊपर से यहां से बिहार शिक्षा बोर्ड की तर्ज पर चुनाव परीक्षा में राजा को 93 प्रतिशत अंक भी मिले हैं। सो, सब ऐंठ-ऐंठ कर चल रहे थे। राजा को ठंड लग रही थी तो सिर थोड़ा ढका था। राजा सड़क किनारे के खोखे पर चाय बेच रहे चायवाले के हाल पूछने लगे।
25 साल पुराना चायवाला भी नहीं पहचान सका। दरबारी भौचक्के रहे। थूक गले में अटक गया। ये गजब हो गया। प्रचार में करोड़ों का खर्च कर डाला, लेकिन चायवाला भी नहीं पहचान सका। हाय, हाय ये क्या हो गया? सारी ऐंठ गायब हो गयी। राजा की फजीहत हो गयी। कारिंदे बोले, अरे, राजा साहेब को नहीं पहचानते। यही तो वो, तुम्हारी तकदीर और तस्वीर बदलने वाले। चाय वाला निरुत्तर था। दरअसल, यह प्रकरण कृष्णदेव राय और तेनालीराम के एक किस्से की याद दिला रहा है। राजा कृष्णदेव सर्दियों में भ्रमण पर थे।
अचानक उन्होंने देखा कि एक भिखारी ठंड से कांप रहा है, राजा ने अपना शॉल उसे दे दिया। राजा कृष्णराय के इस कार्य की सभी ने तारीफ की। तेनाली राम चुप रहा। दरबारियों ने राजा को भड़काया। राजा ने कहा कि तुम मुझसे चिढ़ते हो, इसलिए तारीफ नहीं की। तुम्हें देश निकाला दिया जाता है। देश से बाहर जाते समय तुम कुछ मांग सकते हो। तेनाली ने कहा कि महाराज, मुझे वह शॉल ला दो, जिसे आपने भिखारी को दिया था। राजा ने सिपाही भेजे और भिखारी को पकड़कर दरबार में हाजिर कर दिया। जब शॉल के बारे में पूछा तो उसने कहा, शॉल तो बेच दिया? राजा ने कहा क्यों, भिखारी बोला, भूख मिटाने के लिए। तेनाली ने कहा, महाराज यही समस्या थी, मुझे पता था ऐसा होगा, इसलिए तारीफ नहीं की। समस्या भूख है, ठंड नहीं।
कहना यह चाहता हूं कि राजा को समझना होगा कि राज्य साहेब की नकल उतारने से नहीं चलेगा। प्रचार से भी नहीं चलेगा। जनता को रोजी-रोटी चाहिए, नौकरियां चाहिए, आबाद पहाड़ चाहिए। अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए। मत पूछो चायवाले का हाल, वह बिना प्रचार के ही पहचान लेगा और बिना कहे गुणगान करेगा। इतनी सी बात है। लेकिन आज न तो आज कृष्णदेव राय जैसा राजा है और न ही तेनालीराम समझदार सलाहकार।