Mai Gaon Se Hun: पहाड़ों की पारंपरिक लोक संस्कृति एक और बिलुप्त हो रही है तो दूसरी और पहाड़ के युवक-युवती पहाड़ की लोक संस्कृति को नई पहचान दे रहे हैं। अतीत में, दीवाली पर, लोग आंगन, देहरी (रसोई), कमरे और पूजा घर को ऐपण कला करते हैं। लेकिन अब यह परंपरा पलायन के कारण अलग-थलग पड़े गाँवों में काफी हद तक गायब हो गई है। यहां तक कि गांवों में जो अभी भी बसे हुए हैं, पेंटिंग की तुलना में स्टिकर और सजावट के अन्य रूप अधिक लोकप्रिय हो गए हैं।
लोककलाओं को उनके मूल स्वरूप बरकरार रखते हुए उसमें नए-नए प्रयोग लोगों को खूब भाते हैं। इससे जहां अपनी जड़ों से जुड़े रहने का मौका मिलता है, वहीं इस कला को जारी रख रहे कलावंतों को भी रोजगार और प्रसिद्धि का मौका मिलता है। ऐसी ही कोशिश करके चर्चाओं में आई हैं, ऐपण की लोक कलावंत मीनाक्षी खाती, जो ऐपण गर्ल के नाम से प्रसिद्ध है। मीनाक्षी खाती ऐपण लोक कला को अपनी मेहनत-लगन से नए आयाम देने का काम कर रही है ।
मीनाक्षी अल्मोड़ा जनपद के ताड़ीखेत ब्लॉक के मेहलखण्ड गांव की रहने वाली हैं। उनका बचपन गांव में ही बीता है। वर्तमान में रामनगर में अपने परिवार के साथ रहती हैं। वे रामनगर से ही स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। उनके पिता बिजनेस करते हैं। मीनाक्षी बताती हैं कि बचपन में गांव में मां और दादी को ऐपण बनाते हुए देखती थीं। ऐपण को बनाने और उसके चटख रंग उन्हें बहुत भाते थे। वे हमेशा ऐपण बनाने को लेकर काफी आकर्षित होती थी और मां या दादी के साथ उंगलियों से उनके जैसा बनाने का प्रयास करती थी। बचपन में मिले इस तरह के अनुभवों ने उनको धीरे-धीरे ऐपण की बारिकियों को जानने समझने का मौका दिया। घरों में विभिन्न संस्कारों और त्यौहारों पर ऐपण की तैयारियों में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। जिसकी वजह से धीरे-धीरे वे इस कला में पारंगत होती गई।
मीनाक्षी बताती है कि कुछ अर्से पहले उनके मन में विचार आया कि क्यों न इस लोक कला में कुछ नए प्रयोग किए जाएं। जिससे लोक कला नए संदर्भों में भी जीवंत लगे। बस क्या था, उन्होंने मीनाकृति नाम से एक मंच बनाया, जिससे के माध्यम से ऐपण कला के संरक्षण और लोकव्यापीकरण के काम की शुरुआत की। इस मंच की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उत्तराखण्ड ही नहीं देश-विदेश से सैकड़ों ऐपण कला के कलावंत और कला के पारखी इस मंच से जुड़े हैं।
वह वर्तमान में रामनगर से अपनी डिग्री प्राप्त करने के लिए अध्ययन कर रही है। उसके पिता एक व्यवसाय के स्वामी हैं। जब मीनाक्षी एक बच्ची थी, तो वह अपनी माँ और दादी को गाँव में ऐपण बनाते हुए देखना पसंद करती थी। मीनाक्षी को ऐपण बनाना बहुत पसंद था, इसलिए उसका परिवार और उसकी दादी अक्सर उन्हें बनाने में उनकी मदद करती थीं। इससे मीनाक्षी को ऐपण के बारे में जानने का अवसर मिला और अंततः वह काफी अच्छी तरह से बनाने लगी है ।
‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी ने ऐपण कला को बनाए रखने और लोकप्रिय बनाने में मदद करने के लिए मीनाकृति नामक एक नई परियोजना शुरू की। यह परियोजना बहुत सफल रही है और इसने पूरे भारत और विदेशों के लोगों को आकर्षित किया है। जब ऐपण की लोक कला को बढ़ावा देने की बात आती है तो मीनाक्षी बहुत सक्रिय व्यक्ति हैं। हाल ही में, उन्होंने राज्य स्तर पर उत्तराखंड पर्यटन विभाग के सहयोग से ऐपण की लोक कला को प्रदर्शित किया। और वहां के लोगों ने इसे काफी पसंद किया और इसका आनंद लिया। इसके अलावा, मीनाक्षी को हाल ही में महिला मातृशक्ति सम्मान से सम्मानित किया गया, जो उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण पुरस्कार है।
ऐपण मूलत दिवारों, देहली, पूजा की चौकी आदि पर होता था। सबसे पहले मीनाक्षी ने इसको बढ़ाने का प्रयास किया उन्होंने नेम प्लेट, राखी, घर के लिये शोपीस केतली, दीवारों के सजाने वाले पोर्टेबल ऐपण चित्र आदि को बनाने की शुरुआत की। इस काम में उनका परम्परागत ऐपण का ज्ञान काफी मददगार रहा। उनके परम्परागत ऐपण को इन नए तरीकों से प्रस्तुत करने के काम को लोगों ने हाथोंहाथ लिया। वे बताती हैं कि लोग उनके बनाए ऐपण को मंगाते हैं और मिलने के बाद मैसेज और फोन करके उनका उत्साह बढ़ाते हैं। वे एक वाक्या बताती हैं कि ऐसा ही एक फोन उन्हें आया कि आपके ऐपण ने मेरा बचपन याद दिला दिया। बचपन में हम भी इस तरह के ऐपण बनाते थे। उनकी इन बातों से प्रोत्साहन मिला।
विगत साल हमने सोचा कि क्यों न राखी पर भी इसको ट्राई किया जाए। हमने ऐपण चित्रों वाली राखियां बाजार में उतारी जिसको लोगों ने हाथों-हाथ लिया। इस साल तो हमने उनमें कुमाउंनी और गढ़वाली भाषा में कुछ रिश्तों के नाम को भी उकेरा। दाज्यू, आमा, भैजी, भुला, दीदी आदि के नामों से लोगों में अपनी भाषा और संस्कृति को भी महसूस करने का मौका मिला। इस काम ने राखियों की डिमांड को और ज्यादा बढ़ा दिया। हम लगातार इस तरह की चीजों पर ऐपण करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि पहाड़ में रहने वाले लोग या उत्तराखण्ड से बाहर के लोगों को भी यह सरलता से उपलब्ध हो पाए।
ऐपण बनाने के काम के लगातार बढ़ने के चलते अब मीनाक्षी कुछ युवाओं और महिलाओं को भी इस काम से जोड़ा है। डिमाण्ड के अनुसार, वे उनसे सामान तैयार करवाती हैं। इस काम में मीनाक्षी उनको डिजाइन तैयार कर देती हैं, जिसे वह अपनी घरों में ही तैयार कर उपलब्ध कराती हैं। इस काम से उनको पलायन करने के बजाय अपने घर में रोजगार मिल पा रहा है। बिना पलायन किए रोजगार की यह पहल धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है।
मीनाक्षी बताती हैं कि उनकी कोशिश है कि यह कला उत्तराखंड की लोक कला के तौर पर पहचान बनाए, ताकि जैसे अन्य राज्यों की लोककलाएं राज्य के नाम से प्रख्यात हैं, वैसे ही ऐपण कला भी हो। इसके लिए वे ऐपण को तैयार करने वाले लोक कलाकारों को भी तैयार कर रही हैं। अपनी पढ़ाई से समय निकाल कर वह नई पीढ़ी के बच्चों को ऐपण कला सीखने की कोशिश करती हैं।
वे युवा पीढ़ी को ऐपण प्रशिक्षण में पारम्परिक ऐपण चौकियों, कलाचित्र, भित्तिचित्र, नेमप्लेट, राखियां, कोस्टर्स आदि को तैयार करने की बारीकियों को सिखाती हैं। इसके लिए सबसे पहले इसमें प्रयोग होने वाले सामान को रीसाइकल कर उसको ऐपण के लिए तैयार करना भी सिखाती हैं। वे मानती हैं कि यदि इस कला के जरिये नाम और दाम दोनों मिलेगा तो युवा पीढ़ी इससे जुड़ेगी। इसलिए वे एक तरफ जहां नई पीढ़ी को प्रशिक्षण देने और गाइड करने का काम कर रही है, वहीं उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने और उसका सही दाम इन कलाकारों को मिल पाए इसकी भरसक कोशिश कर रही हैं।
ऐपण कला को पहचान और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए-लिए मीनाक्षी ऑनलाइन कॉम्पटीशन का आयोजन भी कर रही हैं। वे बताती है कि उन्होंने विगत दिनों ऐपण को लेकर कॉम्पटीशन किया। इसमें ऐपण बनाने के साथ उसकी सेल्फी उनके पेज मीनाकृति पर साझा करना था। इस प्रतियोगिता में 200 से ज्यादा लोगों ने प्रतिभाग किया, जिसमें से बेस्ट 30 का चयन किया गया और उनको पुरस्कार दिया गया। इस प्रतियोगिता को करीब एक लाख से ज्यादा लोगों ने देखा और सराहा है। इस प्रतियोगिता के जरिये नए और पुराने ऐपण के कलाकार सामने आ पा रहे हैं वे और बेहतर करने की मुहीम में शामिल हो पा रहे हैं। इसकी सफलता को देखते हुए वे दीपावली से पहले ऑनलाइन प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली हैं। इस बार इस प्रतियोगिता को सहयोग करने वाले सहयोगी भी मिल गए हैं।
मीनाक्षी बताती हैं कि वे विभिन्न प्रदर्शनियों और मंचों का उपयोग ऐपण कला को लोकव्यापिकरण के लिये लगातार कर रही है। अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड पर्यटन विभाग के सहयोग से लोककला ऐपण को राज्य स्तर पर प्रदर्शित किया गया, जिसमें उनके बनाए ऐपण को लोगों ने काफी सराहा था। उनके इस काम को देखते हुए उन्हें राज्य स्तर पर महिला मातृशक्ति सम्मान से नवाजा गया।