Himalayan Garhwal University: हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय(Himalayan Garhwal University) जो अब महाराजा अग्रसेन(Maharaja Agrasen) के नाम से हो गया है। विश्वविद्यालय ने पूरे उत्तराखंड में फ्रेंचाईजी(Franchisee) ऐसे बांटी है जैसे कोई चाइनिज फास्ट फूड की ठेली जहां धड्ल्ले से डिग्रियां बांटी जा रही है और पहाड़ के बच्चों का भविष्य चौपट कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने आरटीआई(RTI) के तहत इस विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किए जा रहे पैरा-मेडिकल कोर्सों(Para-medical courses) को भंडाफोड किया था। विश्वविद्यालय ने 582 छा़त्रों को एमएलटी, बीपीटी और ऑप्टमेट्री में दाखिला देकर लगभग 12 करोड़ रुपये फीस के तौर पर वसूल लिया और न तो पैरा मेडिकल काउंसिल की अनुमति ली और न ही शासन से अनुमति।
सूत्रों के अनुसार एक मंत्री इस विश्वविद्यालय के इस गैरकानूनी काम को महज 5 लाख रुपये के अर्थदंड लगाकर 12 करोड़ की वसूली को जायज करना चाहता है। इसके लिए बकायदा कवायद भी शुरू हो गयी है। गुणानंद जखमोला ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि वे स्पष्ट करना चाहते हैं कि मंत्री या अधिकारी मिलकर एक-दो करोड़ खा लेंगे और विश्वविद्यालय को महज 5 लाख अर्थदंड वसूल कर गैर-कानूनी काम जायज हो जाएगा। जबकि उसी नियमावली में प्रावधान भी किया गया है कि विश्वविद्यालय से प्रति छात्र की फीस का पांच गुणा वसूला जाएं। यानी कि विश्वविद्यालय से अर्थदंड ही वसूलना है तो उस पर 60 करोड़ का जुर्माना लगना चाहिए। लेकिन मंत्री और अफसर मिलकर अपनी जेब गरम कर रहे हैं और भविष्य हमारे प्रदेश के युवाओं का खराब हो रहा है।
इसी तरह से यह विश्वविद्यालय थोक के भाव में विभिन्न कोर्सों की डिग्रियां बांट रहा है। सूचना का अधिकार के तहत मैंने उच्च शिक्षा विभाग से पांच बिंदुओं पर सूचना मांगी। न उच्च शिक्षा विभाग(Higher Education Department) ने और न ही उक्त निजी विवि ने वरिष्ठ पत्रकार को सूचना उपलब्ध कराई कि अब तक कितनी डिग्रियां बांटी जा चुकी हैं। किस कोर्स के तहत कितनी डिग्रियां बांटी गयी। किस-किस राज्य के छात्रों को यह डिग्रियां दी गयी। निजी विश्वविद्यालय ने गुणानंद जखमोला को लगभग धमकी भरे पत्र में बताया कि 5299 छात्र यहां इनरोल्ड हैं। पोखड़ा जैसे रिमोट एरिऐ में यदि इतने छात्र हैं तो यह खुशखबरी है। सच सब जानते हैं।
खैर, इस मामले की सूचना आयुक्त अर्जुन सिंह ने सुनवाई की। सुनवाई में उच्च शिक्षा के लोक संपर्क अधिकारी तो मौजूद रहे, लेकिन निजी विश्वविद्यालय का कोई भी प्रतिनिधि नहीं पहुंचा। यानी उन्हें कोर्ट की भी परवाह नहीं क्योंकि मंत्री और उच्च अधिकारियों से सेटिंग है। सूचना आयुक्त ने मेरी शिकायत को सही ठहराया और उन्हें मुझे वांछित सूचनाएं 15 दिन में उपलब्ध कराने की हिदायत दी है। देखें, क्या होता है। पर ऐसे धोखेबाजों और जालसाजों से अपने बच्चों को बचाना जरूरी है।