दून का इतिहास करवट बदल रहा है। अब ज्ञान के लिए एकलव्य को गुरु द्रोण को अपना अंगूठा काट कर नहीं देना होगा। बल्कि गुरु द्रोण एकलव्यों को राजसी मोह छोड़ ज्ञान के सागर में गोते लगाने के लिए न्योता दे रहा है। जी हां, इतिहास बदलने की यह जिद है सीआईएमएस और यूआईएचएमटी ग्रुप के चेयरमैन ललित जोशी की। एडवोकेट ललित जोशी ने संकल्प लिया है कि वह हर साल 300 बच्चों को निशुल्क उच्च शिक्षा देंगे। जोशी के संस्थान में पिछले साल 146 छात्रों ने निशुल्क शिक्षा हासिल की है और इस बार यह आंकड़ा 300 छूने के आसार हैं।
सीआईएमएस और यूआईएचएमटी में बीबीए, बीसीए, बीएससी.आईटी, बी.ए. ऑनर्स इन मॉस कम्युनिकेशन, बी. लिब, बीएचएम, डीएचएम, बी.एससी. मेडिकल माइक्रोबॉयोलाजी, बी.एस.सी. आप्टोमैट्री, बी.एस.सी.ओटी., बीएमआरआईटी, बीपीटी,बीएमएलटी, बीएससी (पीसीएम/जेडबीसी) बीए, बीकॉम, बी. कॉम ऑनर्स, पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन आदि कोर्स कराए जाते हैं। बच्चों को इन कोर्स में निशुल्क दाखिला दिया जाता है। छात्रों को महज विवि का परीक्षा शुल्क ही देना होता है। टयूशन फीस जीरो है।
चेयरमैन ललित जोशी के मुताबिक शिक्षा से ही किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और देश का भविष्य संवर सकता है। आज के युग में उच्च शिक्षा बहुत महंगी है। ऐसे में प्रतिभावान असहाय और निर्धन परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। वह चाहते हैं कि हर बच्चे को आगे बढ़ने और उसके सर्वांगीण विकास का समुचित अवसर मिले। इसलिए उन्होंने हर साल 300 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का अभियान चलाया है। ललित नशे के खिलाफ भी सजग इंडिया के तहत अभियान चलाते हैं। और उन्होंने 40 हजार बच्चों को ‘नशे को ना और जिंदगी को हां‘ की शपथ भी दिलाई है। कल सामाजिक संगठन विचार एक नई सोच ने उन्हें उनके इस नेक सोच और कार्य के लिए सम्मानित भी किया।
सीआईएसएस और यूआईएचएमटी में कोरोना प्रभावित, आपदा प्रभावित, शहीदों के बच्चों, पत्रकारों, राज्य आंदोलनकारियों और लोक कलाकारों के बच्चों को भी निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। ललित जोशी युवा हैं और संघर्ष की भट्टी में तपकर कुंदन बने हैं। वह बचपन में कभी पूर्णागिरि मेले में साइकिल पर प्रसाद बेचते थे। उनका मानना है कि मां पूर्णागिरि ने उन्हें जीवन की राह दिखाई है तो वह इस जीवन को सार्थक करने की कोशिश कर रहे हैं। ज्ञान बांटने से बढ़ेगा ही, बरकत ही होगी। ललित जोशी के इस जज्बे को सलाम।