चम्पावतः उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत प्रदेश के दुरस्थ क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए खुद गांव में जाकर स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा लेते हैं। वहीं राज्य के कई गांवों में स्वास्थ्य की बदहाल हालत है। लोग उपचार के लिए पैदल चल कर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचते हैं तो वहां या तो डॉक्टर मौजूद नहीं होते या फिर उपचार करने के बदले रेफर कर देते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह जनपद चम्पावत में स्वास्थ्य की लचर हालात है। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर चल्थी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने के बाद भी छोटे से इलाज के लिए टनकपुर जाना पड़ता है।
बीते 9 अगस्त को खिरद्वारी गांव में एक महिला के पेट दर्द होने पर उसे गांव के लोगों ने 17 किलोमीटर पैदल चलकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया तो वहीं डॉक्टर नहीं होने की वजह से उसे 36 किलोमीटर टनकपुर ले जाया गया। जहां उसका इलाज किया गया लेकिन स्वास्थ्य महकमे को इससे कोई फर्क तक नहीं पड़ा। अखबारों में छपी खबर के चलते प्रभारी चिकित्सा अधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चम्पावत द्वाराआनन-फानन में डॉ मुकेश कुमार, एम० ओ० ए०पी०एच०सी०, चल्थी , प्रीतम लाल, फार्मासिस्ट, उपकेन्द्र- सूखीढाग, रीना राणा, ए० एन०एम०. उपकेन्द्र- सूखीढाग, मोनिका महर, सी०एच०ओ०, उपकेन्द्र- सूखीढाग, राखी कुंवर, आशा, पोथ, उपकेन्द्र- सूखीढाग के नाम पर खिरद्वारी में कैंप लगाकर लोगों की जांच और दवा वितरण का आदेश तो किया गया लेकिन 17 किलोमीटर पैदल चलने की डर से डॉक्टर और फार्मासिस्ट कैंप में नहीं पहुंचे।
जान-जोखिम में डालकर 17 किलोमीटर पैदल चलकर दी सेवाएं
रीना राणा, ए० एन०एम०. उपकेन्द्र- सूखीढाग, मोनिका महर, सी०एच०ओ०, उपकेन्द्र- सूखीढाग, राखी कुंवर, आशा, पोथ, उपकेन्द्र- सूखीढाग जान जोखिम में डालकर 17 किलोमीटर पैदल चलकर खिपद्वारी पहुंचे जहां उन्होंने कैंप लगाकर बीपी सुगर की जांच की और दवाईयां वितरीत की लेकिन डॉक्टर और फार्मासिस्ट नहीं होने के वजह से लोगों को जरूरत की दवाईयां नहीं दे सके।
आधे महीने में तीन बार डोली से लाए गए बीमार लोग
5 अगस्त को सौराई गांव के सुरज सिंह को डोली से 12 किलोमीटर ले जाकर सड़क तक लाया गया और वहां से चंपावत जिला अस्पताल उपचार के लिए लाया गया। 7 अगस्त को नीलावती देवी को बड़ौली से डोली से छह किलोमीटर ले जाकर स्वाला से टनकपुर अस्पताल ले जाया गया।
अब सवाल उठता है कि क्या डॉक्टर पहाड़ों में काम नहीं करना चाहते? अगर डॉक्टर पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते तो पहाड़ों की स्वास्थ्य सुविधा कैसे सुधरेगी। क्या एएमएम और सीएचओ के भरोसे पहाड़ों की स्वास्थ्य सेवा चलती रहेगी। सवाल ये भी उठता है की एक प्रदेश की स्वास्थ्य विभाग को संभालने वाले मंत्री पहाड़ों में खुद पैदल चलकर स्वास्थ्य सेवाओं की जांच करने जाते हैं तो डॉक्टर फार्मासिस्ट पहाड़ क्यों नहीं चढ़ सकते।
ये हालात चम्पावत जिले के कई गांवों और स्वास्थ्य केंद्रों की है जहां केंद्रों में डॉक्टर और स्टाफ तो है लेकिन केंद्रों में ताले लगे होते हैं कार्यवाही के नाम पर बहुत बड़ा खेल होता है। जिस खेल में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ही शामिल होते हैं।