जैसे उसने होश संभाला, ऐसे ही उन्हे कुछ कर गुजरने की ललक पैदा हो गई। उन दिनों महिलाओं को व्यवसायिक होने के लिए बहुत बाते सुननी पड़ती थी। सो बसंती को इन बातो से कोई लेना देना नहीं था। उन्हे तो यह साबित करना था कि महिलाएं भी स्वरोजगार कर सकती है।
1986 के दौरान बसंती ने सिलाई का कार्य आरंभ किया। उन्ही दिनों उनकी शादी भी हो गई थी। उन दिनों पेटीकोट की सिलाई मात्र “एक रुपया” हुआ करती थी। बस यहीं से कार्य आरंभ किया और लगभग 18 सालो तक सिलाई करती रही तथा अन्य युवतीयो को भी सिलाई निशुल्क सिखाती रही। दर्जनो युवतियां बसंती से सिलाई सीखकर अपना स्वरोजगार कमा रही है। इस तरह कह सकते हैं कि बसंती राणा ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक नजीर पेश की है।
बसंती राणा, ग्राम पनियाली, हल्द्वानी की निवासी है। 18 वर्षो से सिलाई के कार्य से बहुत अधिक संभावना न देखते हुए इस धीरे धीरे इस कार्य को अलविदा कह दिया। बसंती ने 2016 से अचार बनाने का कार्य आरंभ कर दिया। अचार भी सिर्फ हरी मिर्च और लहसून का।हालांकि बसंती ने अपना व्यवसाय रुपए एक से आरंभ किया हो, मगर वर्तमान में उनके “पिकल्स” के कारोबार का वार्षिक टर्नओवर 20 लाख से भी अधिक है।
बसंती बताती है कि वह पिछले 8 सालो से अचार बनाने और अचार को बाजार पहुंचाने का कार्य कर रही है। वे बताती है कि सिलाई में उन्हें अपने लिए कोई समय ही नहीं मिलता था, इसलिए उन्होंने अपनी सहयोगी महिलाओं के कहने पर अचार बनाना आरंभ किया है।
यह कार्य 2016 में बसंती ने अपने गांव की महिला समूह से जुड़कर शुरू किया है। इसी दौरान गांव में गठित उनके समूह को बैंक ऑफ बड़ौदा ने धूप बनाने का प्रशिक्षण दिया। मगर धूप का कार्य कोई खास सफल नहीं हो पाया।
फिर उन्हे यह सूझा कि नींबू का अचार बनाया जाए। इसके बाद “हरी मिर्च” का भी अचार बनाया गया। जैसे उनका बनाया हुआ अचार बाजार पहुंचा, एकदम मांग बढ़ने लगी। किंतु वे अचार बनाने में एकदम प्रशिक्षित नही थे। बसंती ने इंटरनेट से आचार बनाने की बेहतरीन विधि सीख डाली।
बसंती राणा ने बताया कि किसी भी उत्पादों को बाजार में बेचना किसी भी महिला के लिए बहुत कठीन कार्य होता है। मगर इस काम के लिए उनके पति ने हाथ बढ़ाया और उनका बनाया अचार बाजार पहुंचाने लगा। 2016 से लगातार यह क्रम चलता रहा। 2020 में पहली बार सरस मेले में उन्होंने स्टाल लगाया। जहां उनका बनाया हुआ हरी मिर्च और लहसून का आचार भारी मात्रा में बिका। बस अपनी सहयोगी महिलाओं के साथ मिलकर अचार के कार्य पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
दिलचस्प यह है कि बसंती राणा का बनाया हुआ अचार अब देश के महानगरों दिल्ली, मुबई के अलावा हल्द्वानी, देहरादून काशीपुर में ऑनलाइन बिक रहा है। जिसे वे वैष्णवी स्वयं सहायता समूह के नाम से बेचते है।
बसती राणा सिर्फ व्यवसाई ही नही है बल्कि वह सामाजिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। बताते चले कि कोरोनाकाल में उन्होंने साढ़े तीन लाख के मास्क बेचे है। जबकि 50 हजार मास्क निशुल्क बांटे है। बसंती के साथ 25 महिलाएं आचार बनाने का कार्य कर रही है। प्रत्येक महिला 5 से 7 हजार रुपया प्रति माह कमा रही है।
खास बात यह है कि वे सिर्फ व सिर्फ हरी मिर्च, लहसून का ही आचार बनाते है। जिसकी गुणवत्ता भी सर्वोच्च है। उनके वैष्णव स्वयं सहायता समूह का एक साल का टर्नओवर 20 लाख रुपए है। इसके अलावा उनसे जुड़ी महिला समूह की सदस्य
ईटीसी बागजला प्रशिक्षण केंद्र में भी प्रशिक्षणार्थियों हेतु खाना बनाती है। बसंती बताती है कि केंद्र में रात को भी भोजन बनता है इसलिए रात्रि भोजन बनाने व परोसने में उन महिलाओं के पति मदद करते है।
बसंती बताती है कि उनकी शादी साल 1986 में हो गई। शादी से पहले और शादी के बाद यानी 18 साल तक सिलाई का कार्य किया। इस कार्य ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है। परंतु वह अपनी जैसी अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी। इसलिए सिलाई का कार्य छोड़ “अचार” के कार्य में हाथ आजमाया, जो आज सफलता की ओर है। इस कार्य के लिए उन्हें उनके परिवार के लोगो का पूरा पूरा सहयोग मिल रहा है। वह यह भी बताती है कि इस कार्य के पीछे की सफलता में उनका पति का पूरा सहयोग है।