पंकज जीना जो रेडियो में कहानियां सुनाया करते हैं, ने सोशल मीडिया पर अपने गांव का दर्द जाहिर किया। दर्द जो गांव को पलायन करने के लिए मजबूर कर देता था, गांव जहां नेता नहीं बल्कि प्रशासन भी चोपड़ा गांव जाना भूल गया था। वहां का दर्द पंकज जीना ने बयां किया तो उत्तराखंड शासन, प्रशासन की नींद जग गई और खुद कुमांऊ आयुक्त दिपक रावत गांव का दर्द जानने गांव पहुंचे।
दरअसल नैनीताल के ज्योलिकोट चोपड़ा गांव पिछले एक साल से भूस्खलन की चपेट में आ गया था। गांव के सर पर बोल्डर आ खड़े हैं। है। पिछले साल अक्टूबर में जब अतिवृष्टि आयी, उन दिनों गांव के, ठीक टॉप की धार वाले कुछ बोल्डर, जो बरसों से, वहीं रुके हुए थे, नीचे खिसकने लगे। उन बोल्डरों ने लगभग 1 किलोमीटर नीचे आकर, रास्ते के हर पेड़ और हर चीज़ का नामोनिशान मिटा दिया। उस वक़्त गाँव वालों का यही कहना था कि, इन बड़े बोल्डरों को, भू वैज्ञानिकों की देख रेख में तुड़वा दीजिए, जिससे हमारी समस्या ख़त्म हो जाए। विभागीय अधिकारी बातों को टालते चले गए। चोपड़ा गाँव वाले बेचारे सीधेपन में ही रहते हैं,अब जब एक साल बाद फिर वह पत्थर नीचे आ गए हैं, तो अधिकारियों का कहना था कि इस पर विचार किया जाएगा। अधिकतर दफ़्तरों में गाँव के लोग ज्ञापन लिए दौड़ रहे कि साहेब हमारे गाँव को बचा लो, नहीं तो आपदा आ जाएगी, हमारा नामोनिशान मिट जाएगा।
जिन जनप्रतिनिधियों का चुनाव से पहले गांव में आना जाना हो गया था, उनके साथ काम करने वाले कार्यकर्ता कह रहे थे की ,हमारे जनप्रतिनिधियों को अवगत कराइए। अजीब बात है, चुनाव से पहले जो वादे थे, अब उसके लिए ज्ञापन देना पड़ रहा है। स्वतः संज्ञान लेना तो बहुत दूर की बात, सब जानते हुए भी यह लोग, आँख बंद करके बैठे हैं।
शासन प्रशासन की जब निंद नहीं खुली तो पंकज जीना ने सोशल मीडिया के द्वारा गांव की व्यथा सोशल मीडिया पर शेयर की पंकज ने कविता के माध्यम से लिखा
बारिशों में जैसे
मेंढक निकल आते हैं
वैसे ही आते हैं
इलेक्शन से पहले
मेरे गाँव में नेता
बादलों के गरजने जैसी आवाज़
उनके वादों में भी होती है
वह कहते हैं
कि वह पलट देंगे
सारी विपदाओं को
और बन जाएंगे
सहारा सबका
फिर जब इलेक्शन
पूरे हो जाते हैं
वह ग़ायब हो जाते हैं
बरसात के मौसम की तरह
ठंड का मौसम
पहाड़ो में बर्फ़ गिरा कर
जैसे ख़ामोश कर देता है सभी को
नेता बिल्कुल वैसे ही चुप हो जाते हैं
इलेक्शन के रिजल्ट के बाद।
पंकज की व्यथा शासन प्रशासन ने नहीं सुनी लेकिन उनसे जुड़ने वालों ने जरुर सुनी। कई लोगों ने गांव जाकर वहां की हकीकत को सरकार तक पहुंचाया। जिसका नतीजा रहा की उत्तराखंड में 70 विधायकों में से खानपुर विधायक उमेश कुमार गांव का दर्द समझ कर आगे आए, जिन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर घटना की जानकारी देकर कार्यवाही करने का आग्रह किया। जिसके बाद मुख्यमंत्री ने आपदा विभाग के अधिकारियों और कुमांऊ आयुक्त को गांव का हाल जानने का आदेश दिया।
मुख्यमंत्री के आदेश मिलते ही कुमांऊ आयुक्त दिपक रावत खुद चलकर चोपड़ा गांव के ऊपर आए बोल्डरों का निरीक्षण करने पहुंचे और संबंधित विभागों को तत्काल काम शुरू करने के निर्देश दिए।
दिपक रावत के निरीक्षण करने के बाद पंकज ने सोशल मीडिया पर लिखा,
परिवर्तन एक दिन में नहीं होते,
लेकिन एक दिन होते ज़रूर हैं।
पहाड़ का हर आदमी, हर रोज़ पहाड़ चढ़ता है। यह पहाड़ियों के लिए, कोई महानता वाली बात नहीं है। कमिश्नर साहब,03 किलोमीटर चढ़ाई चढ़े। अब तक अधिकारियों ने इसकी सुध क्यूं नहीं ली?? दस महीने बाद कोई काम होने की संभावना जगी है, तो इसमें ग़लती किसकी है??? क्या हर जगह आईएएस दीपक रावत जैसे अफ़सर को उतरना होगा??बाक़ी लोगों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती?? ऐसे कितने तमाम अधिकारों को पाने के लिए, हमको अभी लड़ना होगा।अभी बहुत से मुद्दे इंतज़ार में है।काश ऐसा न होता।