विषम और विपरीत भौगोलिक, शैक्षिक, सामाजिक परिस्थितियों के बावजूद भी जमीन से आसमान तक पहुंचने का सफर तब और भी खूबसूरत हो जाता है जब इस सफर को एक अकेली महिला तय करती है। उनकी परिस्थितियां कहीं ना कहीं हमारे उत्तराखंड की महिलाओं की परिस्थितियों से मिलती जुलती है क्योंकि जब भी हम उत्तराखंड के परिपेक्ष में महिलाओं की बात करते हैं तो सीधे दिमाग में एक छवि आती है पीठ पर घास लाते हुए, कंडी में गोबर ढोते हुए, सिर में पानी लेकर आते हुए या खेतों में काम करती हुई, भविष्य की चिंता से उन्मुक्त महिलाएं ही उत्तराखंड की महिलाएं हैं और जब मैदानी क्षेत्र में महिलाओं को देखें तो घर के काम तक ही सीमित रहना एवं भारी कार्यों के लिए अधिकांशतः पूर्ण रूप से पुरुषों पर निर्भर रहना देखा जाता है।
फिर भी जो महिलाएं इस पृष्ठभूमि से फलक तक पहुंची हैं उन्होंने उक्त दशा को नई दिशा देने की शुरुआत की है । हाल ही में हॉकी में विश्व फलक पर देश का नाम रोशन करने वाली वंदना कटारिया उत्तराखंड से ही आगे पहुंची हैं, बछेंद्री पाल ने पर्वतीय पृष्ठभूमि से निकलकर पर्वतों के प्रेम को एवरेस्ट की फतेह तक पहुंचाया, गौरा देवी ने रैणी गांव में अपने जंगलों की रक्षा करते हुए पर्यावरण प्रेम की विश्व जगत में जीवंत मिसाल दी, बसंती देवी ने जागर गायन की उत्तराखंड की सांस्कृतिक कला को अलग पहचान दिलाई तो वही कांडरा गांव चमोली की दिव्या रावत मशरूम गर्ल के रूप में महिलाओं को स्वरोजगार की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरणा दी।
इतिहास को देखें तो कुंती वर्मा ने अंग्रेजों के विरुद्ध चलाए जा रहे आंदोलन हो या फिर टिंचरी माई का शराब विरोधी आंदोलन हो या राज्य की मांग का आंदोलन, में सराहनीय भूमिका निभाई । प्रश्न उठता है कि क्या चंद महिलाओं का उत्थान, मातृ समाज के उदाहरणों से पूरा होगा या सामाजिक आर्थिक राजनीतिक एवं शैक्षिक परिदृश्य में इनके लिए कोई विकल्प ढूंढे जाएंगे । आज जब हम 21वीं सदी की बात करते हैं तो पाते हैं कि उत्तराखंड में अधिकांश: महिलाएं अभी भी पुरुषों की परछाई बनी हुई हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल जनसंख्या के सापेक्ष 49% जनसंख्या महिलाओं की है जबकि राजनीतिक दृष्टि से देखें तो आधी आबादी का प्रतिनिधित्व उच्च स्तर पर बहुत कम है। इतना ही नहीं उक्त जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या में से 38.39% लोग कार्यशील हैं जबकि 61.61% आश्रित हैं और आश्रितों में सर्वाधिक महिलाएं एवं बच्चे हैं । अभी हाल ही में चमोली जनपद में घसियारी महिलाओं के साथ हुई झड़प भी महिलाओं की दशा पर चिंतन करने को मजबूर करती है परंतु इस दशा को सुधारने के लिए हमारी सरकार निरंतर प्रयासरत भी है ।
मुख्यमंत्री द्वारा तत्काल जांच के आदेश दिए ताकि दोषियों पर कार्यवाही की जा सके। भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने के उद्देश्य से पंचायतों में 50% आरक्षण के साथ ही शिक्षा एवं परिवार नियोजन को अनिवार्य करने से जहां महिलाएं राजनीति में भागीदारी कर रही हैं वहीं शिक्षित होने की भावना का विकास तथा परिवार नियोजन के माध्यम से स्वस्थ रहने की परंपरा भी शुरू हो रही है । सरकारी तंत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने और आर्थिक रूप से सक्षम करने के लिए 30% आरक्षण सरकारी सेवा में दिया है तो वहीं नंदा गौरा योजना के तहत 12वीं पास छात्राओं के लिए ₹75000 की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की है।
वर्तमान में एक और जहां स्वयं सहायता समूह को स्वरोजगार हेतु ऋण उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर जमीन की खाता खतौनी में महिलाओं का नाम जोड़ा जा रहा है । घसियारी योजना के माध्यम से सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं की मूलभूत समस्याओं के निदान की पहल शुरू की है, वह सफल कितनी होती है इसका आकलन तो कुछ समय बाद लगाया जा सकता है परंतु यह इतना संदेश अवश्य देती है कि सरकार भी उत्तराखंड की महिलाओं की मूलभूत समस्याओं के निदान हेतु प्रतिबद्ध है।
फिर भी उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों तथा महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि महिलाओं द्वारा निर्मित उत्पादों को भी सभी राजकीय कैंटिनो, सस्ते गल्ले की दुकानों में, मेलों के माध्यम से उपभोक्ता तक पहुंच को सरल बनाया जाए तो वहीं पंचायतों में पति की प्रथा का पूर्ण रूप से उन्मूलन किया जाए साथ ही अपने खेतों में काम करने वाली महिलाओं को यदि मनरेगा से मजदूरी प्रदान की जाती है तो उस से बढ़ते पलायन, पर्वतीय क्षेत्रों में कम होती खेती पर रोक लग सकती है ।
इस तरह के प्रयास महिलाओं को बेशक आगे बढ़ाएंगे परंतु महिलाओं को आगे बढ़ाने की मुहिम में महिलाओं को स्वयं एवं सक्षम महिलाओं को भी आगे आना होगा तभी वह दिन दूर नहीं होगा जब हमारे राज्य की महिलाएं भी घस्यारी से लेकर राष्ट्रपति घर तक का बेमिसाल सफर तय करेंगे।