“हरेराम शर्मा”
मैं आदि नहीं, आदि पुरुष हूं
रूद्र नहीं, महारूद्र हूं
काल नहीं, महाकाल हूं मैं
तेरे जैसों के लिए एक सवाल हूं मैं
अनभिज्ञ है तू मेरी शक्ति से
मुझे ललकार मत,
विकट नहीं, विकराल हूं मैं।
मैं महायोगी, मैं जोगी
मैं ही मरघट का भोगी
मैं नर, मैं निरंकार
मैं ही हूं ओमकार
मुझसे अंत, मुझसे शुरुआत
ब्रह्मांड का हूं मैं ही आधार
7 सूरों का श्रृंगार हूं
वेदों का आधार हूं
हर जीव में बसी
प्राण ज्योति का सार हूं
माता की ममता हूं मैं
पिता का प्यार हूं
शक्ति मुझमें है अपार
मैं ही तो हूं निरंकार
अजन्मा हूं मैं, अखोरी हूं मैं,
मैं ही शिव, गौरी हूं मैं।
लक्ष्मी हूं मैं, नारायण हूं मैं,
मैं ही राम, रामायण हूं मैं।
कृष्णा हूं मैं, राधा हूं मैं,
मैं ही सम्पूर्ण, आधा हूं मैं।
शांति हूं मैं, क्रोध हूं मैं,
मैं ही सुगम, अवरोध हूं मैं।
मैं ही गर्मी, मैं बरसात,
मैं जाड़ा, मैं ही बसंत की फुहार।
अग्नि हूं मैं, वरुण हूं मैं,
मैं ही इन्द्र, सूर्य हूं मै।
देव हूं मैं, दानव हूं मैं,
मैं ही पशु, मानव हूं मैं।
राजा हूं मैं, रंक हूं मैं,
मैं ही गद्दा, शंख हूं मैं।
ज्योति मेरी है विकराल,
मैं ही तो हूं निरंकार।
विघ्न हूं मैं, विघ्नहर्ता हूं मैं
मैं ही कार्य, कर्ता हूं मैं।
भरोसा हूं मैं, शंका हूं मैं
मैं ही गल और डंका हूं मैं।
दुर्गा हूं मैं, काली हूं मैं,
मैं ही रहसू, थावेवाली हूं मैं।
हिम हूं मैं, हिमालय हूं मैं,
मैं ही शिव, शिवालय हूं मैं।
ब्रह्म हूं मैं, परब्रह्म हूं मैं,
मैं ही कर्ता, कर्म हूं मैं।
राम हूं मैं, कृष्ण हूं मैं,
मैं ही सोम, विष हूं मैं।
रण हूं मैं, रणधीर हूं मैं,
मैं ही कृपाण, तीर हूं मैं।
विक्रम हूं मैं, बेताल हूं मैं,
मैं ही उत्तर, सवाल हूं मैं।
बूंद हूं मैं, समुंद्र हूं मैं,
मैं ही पोखरा, पूल हूं मैं।
नट हूं मैं, नटराज हूं मैं,
मैं ही सर और ताज हूं मैं।
ना ही मेरा अंत, ना ही मेरी शुरुआत
मैं ही तो हूं निरंकार।